भारतीये न्याय-व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं

भारतीये न्याय-व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं : लचीली/कठोर, बड़ा क़ानून, १.सम्पूर्ण देश में न्यायपालिका की एकरूपता- सबका समान कानून, क्षेत्रिये सुविध्यें अलाग हो सकती, २.न्यायालय की पीठ व्यस्था- विशेषता है की २ या अधिक न्यायाधीश पीठ/बेंच आकर में बैठकर मुकदमा सुनते हैं अनु १४५, ३.दंड प्रक्रिया में सुधार-अंग्रेजों के समय से थे इसीलिए बाद में परिवर्तन ज़रूरी, अनु १४५ और १९७३ अनुसार नई दंड व्यवस्थाएं बनी + अवैतनिक मजिस्ट्रेटों व्यस्था को समाप्त, ४.न्यायाधिकर्नो की स्थापना- tax विवाद, सीमा शुल्क, राज्यों के विधानमंडल nyayadhikaarno (त्रिबुनाल्स) में व्यस्था करते, ५.न्यायपालिका की स्वतंत्रता- e.g. न्यायाधीशों नियुक्ति को कार्यपालिका से मुक्त रखा गया है।

न्याय पुनरवलोकन क्या है : 1803 america के न्यायाधीश मार्शल ने किया, 'Marbury vs. madison' Case में कहा "कानून क्या है इसका निर्णय करना पूर्णत न्याय विभाग का अधिकार, यदि न्यायालय संविधान का आदर करते, तब दोनों में विरोध की स्तिथि में व्यस्थापिका द्वारा निर्मित विधि के स्थान पर संवैधानिक विधि को मान्यता मिलनी चाहिए, अर्थात किसी भी कानून को अवैध घोषित किया जा सकता हैभारतीये संविधान में न्यायिक पुनरीक्षण से सम्बन्धी प्रावधान: i.मूल अधिकारों को छिनने या न्यून करने पर प्रतिबन्ध (अनु १३(२)) ii.संघ व राज्ये अपने विधायी क्षेत्र का अतिक्रमण नही कर सकते (अनु २४६), iii.नागरिकों की संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा संरक्षण (अनु ३२)- अगर आपको लगता है की आपके मूल अधिकारों का हनन हो रहा है तो, iv.संविधान की व्याख्या सम्बन्धी शक्ति- अनु १३१, १३२, = पुनः व्याख्या शक्ति, v.संसद व राज्य विधान मंडलों द्वारा बनाये कानूनों की असंगति की स्तिथि में (अनु २५२, २५४)- संसद अनु २४९, २५०, बहुमत द्वारा कानून बनाना,