भारतीये शक्ति की संरचना: संस्थागत ढांचा

LESSON-4, भारतीये शक्ति की संरचना: संस्थागत ढांचा: सरकार के तीन अंग: (१)-विधायका(vyavsthapika) -जनहित कानून बानना, मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी, विधायिका के तीन अंग= १-राष्ट्रपति, २-राज्यसभा, ३-लोकसभा, देश के ६ राज्यों के द्विसदानिये विधानमंडल राज्ये= बिहार, जम्मू क, आन्ध्र, कर्नाटक, महारष्ट्र, उ प, दुसरे सदन को विधान परिषद् कहेते, सदस्य विशेष रीती से चुने जाते, विधायिका के कार्ये :A-कानून निर्माण=तीन प्रकार से= i)- कानून बनाना=जनता का प्रतिनिधि विधानमंडल में बैठकर कानून निर्माण करते, बोलने का अधिकार, विवाद होता, सरकार पक्ष में बोलती और विपक्ष त्रुटियां निकालता ii)- बजट पारित करना= वित्त मंत्री+अन्ये मंत्री परामर्श से बनते, वाद विवाद होता, कटौती हो सकती, अस्वीकृत भी हो सकता, कर व्यस्था, iii)- संविधान संशोधन-सर्व सम्मति से सर्व कल्याण हेतु, B-अन्ये कार्ये - i)- कार्यपालिका पर नियंत्रण= अविश्वास, काम रोको, बहस, संसद आहों से चलता, ii)- न्यायिक कार्ये= सदस्यों के virudh कारवाही, पदाधिकारिओं/राष्ट्रपति पर महाभियोग, iii)- विदेश नीतियाँ/ नियंत्रण-युद्घ/ संधि/ समझौता अनुमोदन द्वारा iv)-चुनाव कार्ये- व्यस्थापिका+राष्ट्रपति + उप राष्ट्रपति भी भाग लेते, (२)-कार्यपालिका-लागु करना= तोड़ने वालों को दंड देना, प्रशासन की देखभाल, वे सभी व्यक्ति/ कर्मचारी आते हैं जिसका कार्ये कानून लागु करना है, दो रूप होते= १-राजनितिक कार्यपालिका= जनता ke प्रतिनिधि; २-स्थ्याई कार्यपालिका= सिविल sevaon के कर्मचारी (jaise प्रशासनिक अधिकारी/ राजकरमचारी- परीक्षाओं ke मध्यम से आते=job permanent); कार्यपालिका के कार्ये: १-प्रशासनिक= शान्ति व्यस्था, सुरक्षा, रेल, तार, डाक, कृषि ; २-सैनिक कार्ये= जल/thal/वायु- अधिकारीयों की नुयुक्ति, युद्घ की घोषणा, संकटकाल में सैन्ये शक्तियां badh जाती, ३-कुटनीतिक कार्ये- दुसरे deshon साथ सम्बन्ध sthapit, समझौता, युद्घ, संधि, विदेश नीतियाँ, ४-कानून निर्माण- वैसे व्यस्थापिका करती- लेकिन आजकल भार बढ़ने से ५-वित्तिये kartvye- संसद अनुमति, ६-न्यायिक कर्त्व्ये-न्यायधीशों की नियुक्ति, दंड देना, ७-अन्ये कार्ये=विज्ञान, कला, खेल, साहित्य में पुरूस्कार, पेंशिओं, वीरता पुरूस्कार आदि, (३)-न्यायपालिका=निर्णय, व्यस्थापिका द्वारा दंड देना, संविधान की रक्षा, विभिन्न स्टार पर न्यायालय, जिला/उच्/सरवोछ न्यायालय आदि ग्राम star पर पंचायत होती, केन्द्रिये विधान मंडल (संसद) : (१) राज्ये सभा (उपरी सदन) (२) लोक सभा=(निचला सदन), (१) राज्ये सभा= २५० सदस्य, १२ सदस्य राष्ट्रपति द्वारा, योग्यता= साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा, शेष सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होंगे, उनका निर्वचान प्रत्येक राज्ये की विधान सभा सदस्य द्वारा- एकल संक्र्मनिये मद द्वारा होगा, इस समाये राज्ये सभा में २४५, २३३=राज्यों, तथा संघशासित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व, प्रतिनिधत्व= अरुणाचल=1, assam=7 आंध्र=18, उडीसा=10, उ प=31, उत्तरांचल=3 कर्णाटक=१२, केरल=9 गुजरात=11, गोवा=1 छत्तीसगढ़=5 जम्मू क=4, झारखण्ड=6, Tamil-18, Naga-1, Punj-7, पश्चिमी बंगाल=16, Bihar=16, Manipur-1, MP=11, Maharashtr=19, Mizo=1, मेघयालय-1, Rajsthan-10, Sikkim-1, Hry=5, Himachal=3, Tripura=1, संघ शासित= दिल्ली=3, पोंडिचेरी=1; (टोटल=233), राज्य सभा सदस्यों की योग्यता= 1-नागरिक, 2-३० से अधिक, 3-अधिनियम १९५१ अनुसार राज्ये का संसदिये निर्वाचक हो, जहाँ वह चुनाव लड़ता है, अयोगता= Govt. Job, दिवालिया, पागल, अन्ये देश की नागरिकता या भक्ति भावना, संसदिये विधि द्वारा अयोग्य; कार्यकाल=६ वर्ष, १/३ सदस्य २ वर्षों में सेवा निवृत होते, पद रिक्तता=सदन के दोनों सदनों में नियुक्त होता, अनु १०२= अयोग्य सिद्ध होने पर, ६० दिन अनुपस्थित, गणपूर्ति= समस्त संख्या का १० वन भाग उपस्थित होना आवश्यक नही तो बैठक नही, राज्ये सभा का सभापति= भारत का उप राष्ट्रपति राज्ये सभा का पदेन सभापति होता, बैठकों का सभापतित्व करता, वाद विवाद नियंत्रित करता, अनुशासन, बहुमत से उप सभापति चुन सकता, अगर राष्ट्रपति- म्रत्यु/ त्यागपत्र/ महाभियोग/ बीमार तो उसका काम देखेगा पर बैठकों का सभापतित्व नही करेगा, राज्ये सभा के कार्ये= १-विधायिका सम्बन्धी अधिकार= वित्त विधेयक को छोड़कर अन्ये विधेयक समान अशिकार, कानून निर्माण, विधेयक विचार विमर्श, दोनों सदनों द्वारा पारित फ़िर राष्ट्रपति स्वकृति, अगर मतभेद तो बैठक, २-वित्तिये अधिकार-वित् विधेयक, १४ दिन बाद लौटना पड़ता, १४ दिन बाद नही लौटती तो पारित माना जाएगा, ३-प्रशासनिक अधिकार- प्रशन /पूरक प्रसंह द्वारा कार्यपालिका से सुचना मांगी जा सकती, काम रोको प्रस्ताव, मंत्री उसकी कार्यवाही में भाग ले सकते, भाषण/तर्क दे सकते, ४-संविधान संशोधन सम्बन्धी अधिकार= २/३ बहुमत जरुरी, मतदान, बहुदालिये पढ़ती, (प्रिवी पर्स १ मत से पराजित हुआ था तो पारित नही हुआ), ५-विविध अधिकार= १-रास्त्रपति निर्वाचन, २-रा पर महाभियोग, २/३ बहुमत, तो राष्ट्रपति हटना पड़ता, ३-अगर २/३ बहुमत कोई विशे राष्ट्रिये महत्त्व का तो संसद उस पर कानून बना सकती, ४-२ मॉस से अधिक तक परिवर्तित तो आपात उद्घोषणा, लोक + राज्ये परमस्श आवश्यक, मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते, ५-न्यायधीश को हगना- सर्वसम्मति/ राष्ट्रपति द्वारा, २/३ बहुमत जरुरी, ६-उप राष्ट्रपति को हटाया जा सकता, ७-अखिल भारतीये सवयं निर्माण अधिकार, २/३ बहुमत, और परामर्श जरुरी; राज्ये सभा की उपयोगिता: १-वाद विवाद स्तर ऊँचा होता, इनका तर्क भरी, समय बहुत होता, बारीकी से जांच करते, ऊँची योग्यता होती, २-मंत्रिमंडल के विरूद्व अविश्वास प्रस्ताव नही रख सकता, पर लेकिन जनता को जानकारी दे सकता, प्रेस कांफ्रेंस आदि से, ३-न्यायधीशों के विरूद्व महाभियोग में राष्ट्रपति अनुमति जरुरी, लोकसभा: = निचला सदन, जनता का प्रतिनिधत्व, लोकसभा की रचना= अनु 81(1) अधिकतम सदस्य संख्या ५००, लेकिन वृद्धि होती रहती, (५३०=संघ राज्यों से, २० केन्द्र शासित से), २=अंग्लो इंडियन, कुल संख्या ५४५, जिनमे से ५३० राज्यों का प्रतिनिधित्व करते, १३ संथ्शासित क्षेत्रों का, २=राष्ट्रपति द्वारा अंग्लो इंडियन समाज का, गणपूर्ति= अनु 100(3)/(4)- प्रेतेयक सदन की बैठक की गणपूर्ति कुल सदस्य संख्या का १/१० भाग होगी, यदि गणपूर्ति ना हो तो स्थगित/ निलंबित जब तक गणपूर्ति जा हो जाए, संसद के अधिवेशन= अनु 85(1)-राष्ट्रपति समय समय पर संसद अधिवेशन करता, बैठक में ६ मॉस से अधिक अन्तर नही होना चाहिए, लोकसभा सदस्यों निर्वाचन प्रक्रिया=१-प्रत्यक्ष निर्वाचन- जनता- व्यस्क मतदान, २-गुप्त मतदान, ३- व्यस्क मताधिकार- जाती लिंग भेद नही होगा, आम आदमी मताधिकार=भारत का नागरिक हो, १८ फर्श पुरे कर चुका हो, आतंकी/ TADA/ दिवालिया/पागल न हो, 4-एक निर्वाचन एक से अधिक प्रतिनिधि, ६- अनुसूचित जातियों सुरक्षित स्थान-उम्मीदवार, 79 वें स संशोधन (1999), आरक्षण सन २०१० तक जरी, लोकसभा सदस्यता के लिए योग्यताएं-१-नागरिक, २-वोटर लिस्ट में नाम, ३-२५ साल से अधिक, ४-संसदिये योग्यताएं रखता हो, ५-तीसरी अनुसूची फॉर्म पर शपथ ग्रहण करे, श्रधा और निष्ठां रखेगा, अखंडता भी= १६ वन संशोधन (१९६३), ६-सुरक्षित निर्वाचन तो जाती या जन जाती का हो, नामांकन पात्र में प्रत्याशी द्वारा दी जाने वाली सूचनाएं= अपराधीकरण रोकने हेतु, चुनाव आयोग २००४- हलफनामा= १-क्या फौजदारी में दिश्मुक्त/दण्डित हुआ, २-छ महीने पीछे क्या कोई ऐसी सज़ा मिली जिसमे २ से अधिक सजा हो, ३-उसके पति/ पत्नी आश्रित पूंजी ब्यौरा, ४-कोई ऋण / सरकारी dues तो नही, ६-शक्श्निक योगता, संसद सदस्य की योग्यता/अयोग्यताएं= अनु १०२, ३२७ जन प्रतिनिधि अधिनियम १९५१, १-Govt. Servent, २-पागल, ३-दिवालिया, ४-नागरिकता दुसरे देश की, ५-अपराधी, ६-देशद्रोह, भ्रष्टाचार, विवाद में हो, ९-सरकार से आर्थिक सहयता, १०-सरकारी ठेके में हो, लोकसभा सद्स्येता का अंत= conditions= १-कई निर्वाचन क्षेत्रों से जीतता तो केवल एक ही, २-लोक / राज्यसभा तो किसी एक को चुनना पड़ेगा, ३-निर्वाचित होने के बाद सरकारी नौकरी कर ले, ४-६० दिन से अधिक अनुपस्थित, States= Andhra-४२, अरुणाचल-२, असम-१४, बिहार-४०, छत्तीसगढ़-११, गोवा-२, गुज-२६, हरी-१०, हिमाचल-४, ज & क-६, झारखण्ड-१४, कर्नाटक-२८, केरला -२०, मध्य प्रदेश -२९, महाराष्ट्र-४८, मणिपुर-२, मेघालय -२, मिजोरम -१, नागालैंड -१, उड़ीसा-२१, पुनजब-१३, राजस्थान-२५, सिक्किम-१, तमिल नाडू-३९, त्रिपुरा-२, उत्तर प्रदेश-८०, उत्तराखंड-५, वेस्ट बंगाल-४२, Union Territories= एंड & निक इस्लान्ड्स-१, चंडीगढ़-१, दादरा & नगर हवेली-१, दमन & दियू -१, डेल्ही --७, लक्षद्वीप -१, पांडिचेरी-१, (Anglo- lndians if nominated 2 by the President under Article 331 of the Constitution), दल बदल अयोग्यता/ दल badal क्या है = दलबदल विरोधी, राजीव गाँधी प्रयत्नों से, अधि-१९८५, अनु १०१, १०२, १९०, १९१, संशोधन दसवीं अनुसूची में अयोग्यता घोषित= १-निर्वाचित सदस्यों के लिए व्यस्था- अगर अपने मूक दल की सदस्यता के स्वेच्छा से छोड़ दे, अनुमति बिना मतदान करे, मतदान में भाग न ले, दल ही उसे निकल दे, तो स्नान रिक्त और अयोग्य समझा जाएगा, २-नाम निर्देशित सदस्यों के लिए- स्थान ग्रहें की तारीख से ६ मॉस अन्ये दल में मिल जाए, ३-विधयक दल में विभानाज - १/३ सदस्य अपने मूल राजनितिक दल छोड़कर अलग दल बना लेते तो इसे दल बदल नही संख जाएगा, ४-कोई एक दल दुसरे दल में मिल जाता- २/३ सदस्य दुसरे दल में तो दलबदल नही है, ५-सदनों के अध्यक्षों को छूट- यदि लोकसभा/ राज्यसभा के उप सभापति आदि तो त्यागपत्र दे देता, पड़ मुक्ति बाद दल बदल नही समझा जाएगा; ६-अयाग्यता न्यायलयों के क्षेत्र से बहार, (७) दल बदल विरोधी संविधान (९१ संशोधन) अधि- १-किसी दल के १/३ सदस्य अपने दल त्याग देन तो सद्स्येता खो देंगे, २-१/३ सदस्य दल छोड़ते तो अनुमति है, ३-लोकसभा कुल सदस्य संख्या १५% से अधिक नही होती, लोकसभा का कर्येकाल= अनु 83(2)-चुनाव का बाद ५ वर्ष राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से पाहिले भी भंग कर सकता, अध्यक्ष spkekar का चुनाव (aajkal Smt. Meira Kumar)= बहुमत से, संसद द्वारा निर्धारित वेतन/ भत्ते, संचित निधि कोष से, निशुल्क निवास, स्वयं त्यागपत्र या अविश्वास से हटाया जा सकता, अगले चुनाव तक पड़ पर बना रहेता है, लोक सभा अध्यक्ष कार्ये और शक्तियां- १-बैठकों की अध्यक्षता, २-नेता को परामर्श- ३-प्रस्तावों की अनुमति-काम रोको, ४-संसदिये समितिये कार्ये, ५-भाषणों के सम्बन्ध में- सभी भाषण स्पीकर को संबोधित, ६-सदस्यों को चेतावनी, ७-सदन की बैठक स्थगित, ८-सदस्यों की सुख सुविधा कार्ये- आवास, वेतन, भत्ते, टेलीफोन, ९-दर्शकों पर नियंत्रण, १०-वित्त विधेयक का निरनेय-११-विध्य्कों पर हस्ताक्षर, १२-विशेषाधिकार की रक्षा- दल बहुमत के बल पर मनमानी न करे, १३-कोरम गणपूर्ति, १४-विधेयकों पर मत लेना, १५-मत देना, १६-सयुंक्त अधिवेशन सभापतित्व करना, १७-प्रशासनिक कार्ये, लोक सभा अध्युँक्ष की स्तिथि-प्रतिष्टित पड़ है, बहुत ही आदरनिये पड़ है, अगर अध्यक्ष कोई बात बोल दे तो यह नही की बहार चला जाए, बल्कि बात माननी पड़ेगी, अध्यक्ष निष्पक्ष होता, लोकसभा तथा राज्ये सभा की शक्तिओं की तुलना=, १- विधि शक्तियां=बराबर, पारित करने के लिए दोनों सदनों में बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर लेते, १)अववादास्पद विधेयकों को राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता, २)पारित करने में देरी करना- लोकसभा से पारित को रा सभा ६ महीने तक रोक सकती, ३)रा सभा को विचार का अधिकार है, २-वित्तिये शक्तियां- लोक सा से आया वित्त १४ दिन तक रोक सकती, ३-न्यायिक शक्तियां-लोकसभा द्वारा महाभियोगों को जांचने का अधिकार, ४-कार्यकारणी पर नियंत्रण शक्ति-अविश्वास प्रस्ताव, अपदस्थ कर सकती, ५-चुनाव शक्ति-लोक + रा सभा दोनों को राष्ट्रपति / प्रधानमन्त्री चुनाव में भाग लेने अधिकार , 6-सदन की कार्यवाही=समान अधिकार, ७-संविधान संशोधन=समानता है २/३ बहुमत, ८-अध्यादेश=दोनों अनुमोदित करते, ९-आपातकाल- दोनों का समर्थन जरुइरी, लेकिन भंग होने पर रा सभा का समर्थन जरुरी, १०-राज्ये सूचि शक्ति- राज्ये सभा २/३ बहुमत से पारित कर सकती, ११-अखिल भारतीये सेवाओ अधिकार= केवल रा सभा को अधिकार, संसद सदस्यों के विशेष अधिकार=अनु १०५= १- वाक् स्वंत्रता, २-न्याल्ये कारवाही से मुक्त, ३-न्ययालय हस्तक्षेप निषेध, ४-सत्र के ४० दिन पाहिले और बाद में दीवानी मामलों गिरफ्तार नही कर सकते, ५- सत्र के दौरान सम्मन नही, ६-बिना जांचे कुछ भी प्रकाशित नही करना, ७-प्रतेयक सदन को शक्ति है की न्यायालये के हस्तक्षेप में बिना निश्चे करे, ८-अध्यक्ष/सभापति किसी भासे से बहार जाने का आदेश दे सकते, ९-सदस्यों / भरी व्यक्तिओं को सदन अधिकारों भंग तो दण्डित किया जा सकता, १०-फौजदारी मामलों में सदस्य गिरफ्तारी से पूर्व लोक सभा अध्यक्ष / सभापति को सुचना जरुरी, विशेषाधिकारों भंग या संसद द्वारा अवमानना पर दंड की शक्ति- संसद का प्रत्येक सदन स्वयं हे अपने विशेषाधिकारों का संरक्षक, विशेषाधिकार हनन पर तीन प्रकार के दंड दिए जा सकते १-कारावास-अवधि स्त्रफ्व्सान तक, २-चेतावनी ३-सभा से निष्कासन/निलंबन