लोकसभा तथा रा सभा की शक्तियों की तुलना

राज्य-२८=१.असम,२.आंध्र,३.अरुणाचल प्र,४.बिहा,५-छत्तीसग,६-गोवा,७-गुज,८-hry,९-हिमाचल प्र,१०-ज&K, ११-झारखन, १२-कर्नाट, १३-केरल, १४-MP, १५-महाराष्ट्र, १६-मणिपुर, १७-मेघा, १८-मिजो, १९-नागा, २0-उडिस, २१-Punj, २२-Raj, २३-Sikkim, २४-तमिलनाडू, २५-त्रिपुरा, २६-उत्तराँचल, २७-UP, २८-पश्चिम बंग (लोक सभा की Total=530 सीट) संघ शासित प्रदेश= १.अंड/निको,२-चंडी,३-दादरा/नगर हेवे, ४-दमन/दीव, ५-दिल्ली, ६-लक्ष्यद्वीप,७-पोंडिचेरी, (कुल=१३ सीट); ....... लोक सभा अध्यक्ष की स्तिथि- प्रष्ठित/अराजनैतिक पद है, अपनी बात पुरी कर ले तभी सदस्य सदन छोड़ सकते, पक्षपात नही करता/नही करना चाहिए, लोकसभा तथा रा सभा की शक्तियों की तुलना (अन्तर): इंग्लॅण्ड के हाउस ऑफ़ कॉमंस के सामान शक्तिशाली है, usa के प्रतिनिधि सदन से अधिक शक्तिशाली है, राज्य सभा की रचना कुछ ऐसी की ना तो शक्तिशाली ना तो कमज़ोर, तुलना: १-विद्यायी शक्तियां: साधारण विधे मामले में समान है, जैसे संस्थानों का नाम परिवर्तन, अगर मतभेद तो बैठक - अगर बैठक में लोक स की सदस्य संख्या रा सभा से २ गुनी है तो लो स का मत पारित,
विशेषअधिकारों के भंग करने/ संसद द्वारा अवमानना दंड देने शक्ति - दंड शक्ति सदन की समस्त अव्मंनाओं, चाहे सदस्यों द्वारा या गैर सदस्यों द्वारा / अपराध सभा के भीतर हो या बहार, संसद का प्रतेयक सदन स्वयम ही अपने विशेषाधिकारों का संरक्षक है। विधि निर्माण/विधेयक: संसद का कार्य है-विधेयक 2 प्रकार के (१)सरकारी- मंत्रिओं द्वारा (२)गैर सरकारी- अन्य सदस्य द्वारा ; (१)धन विधेयक (२)साधारण; -- १- धन विधे i.e. टैक्स लगाया/हटाया जा सकता+ निधि से धन निकास, वार्षिक बजट, (अनु 110); इसको पारित करने शर्तें :- (१) राष्ट्रपति अनुमति (२) लोक सभा में प्रस्तुत होगा राज्य स में नही (३)संयुक्त संसदीया समिति को नही सौपा जाता (४) लोक स के बाद राज्य स में प्रस्तुत करना (5)१४ दिन बाद वापस लोक स को (6) १४ दिन तक पारित नही तो पारित मन जाएगा (७)१४ दिन में लौटा सकती लेकिन संशोधन नही कर सकती (8)लोक स- र सभा द्वारा संस्तुतियों को स्वीकार/ अ स्वीकार कर सकती (9)यदि स्वीकारती तो पारित (10)यदि ल सभा र सभा द्वारा संस्तुतियों को अस्विकारती तो पारित समझा जाएगा (11)धन विधेयकों को पुनर्विचार हेतु वापस नही ; २- साधारण विधे- (a)जो धन विधे नही= साधारण (b)लोक स या राज्य स में प्रस्तुत कर सकते (c)मंत्रियों/सांसद द्वारा प्रस्तुत (d)पारित होने के स्तर होते: 1-प्रथम वचन 2-द्वितीय व 3-समिति स्तर 4-प्रतिवेदन स्तर 5तृतीय वचन; प्रशन काल- संसद सदस्य मंत्रिओं से प्रशन पूछते (१घंटा); प्रशन प्रकार- [1]तारांकित- मौखिक जवाब+ पूरक प्रशन [2]अतारांकित- लिखित/टेबल पर [3]अल्प सुचना- १० दिन पूर्व सुचना, तत्काल जवाब दे भी सकता है या फिर सम्बंधित मंत्री से समय लेकर ; १/२ घंटे की चर्चा- सप्ताह में ३ दिन, तीन बैठक, १/२ घंटा, लोक महत्व विषय, स्पष्टीकरण; शून्य कल- प्रशन काल के तत्काल बाद लंच से पाहिले [१] ऐसे प्रशन जिनकी पूर्व सुचना नही/ जरुरी [२]-कोई नियम नही होते [३]-पर व्यस्था जरुरी+ प्रत्यक को बोलने मौका; अल्पकालीन चर्चा- सप्ताह में २ बैठक+ ऐसे मामले-टाला नही जा सकता (मंगल/ब्रहस्पति); स्थगन प्रस्ताव- गंभीर मामले, शीध्र विचार, सामान्य कार्य रोककर, शाम ४ बजे विचार, निपटारे बिना उठ नही सकते, 50 सदस्य सहमति; ध्यानाकर्षण प्रस्ताव- लोक महत्व प्र, पूर्व अनुमति ज़रूरी, मंत्री समय मांग सकता, लिखित में; लेखानुदान- अग्रिम अनुदान तक सभा शक्ति= लेखानुदान, औपचारिक मामला है, बिना चर्चा के स्वीकार; विनियोग विधेयक- if सभी अनुदान पारित तो विनियोग हेतु जो विधेयक= वि विधेयक; वित्त विधेयक- बजट के तुंरत बाद रखा जाता, विरोध नही, अगले वर्ष हेतु प्रस्ताव; बजट= बार्षिक वित्तीय विवरण, आय - व्यय, दो रूप- १-रेल वित्त बजट फरवरी 3rdसप्ताह किसी भी दिन; २-सामान्य बजट; फरवरी अन्तिम कार्य दिवस 5 बजे; तदर्थ बजट : कभी-२ बजट समय पर प्रस्तुत नही हो पता - वोट आन अकाउंट कहा जाता है; कटौती प्रस्ताव - बजट में कटौती तीन प्रकार १-नीतिगत - ख़ास मांग / नीति में कटौती; २-अर्थगत - मद में मांगी गई राशी में कटौती; ३-प्रतीक कटौती- किसी राशी में १०० रु कटौती - उदेश्ये =विरोध ।


संसदीय समिति- [१] स्थाई- तीन हैं- १-लोक लेखा समिति-(२२सदस्य, १५लोक सभा से, ७राज्य सभा से इनको मताधिकार प्राप्त नही, किसी मंत्री को नही लेते, कार्यकाल १वर्ष, यह लोक लेखा/ महालेखाकार निरिक्षण+ खर्चों को देखती; २-प्राक्कलन समिति- ३० सदस्य, एकल संक्रमण पद्धिति द्वारा निर्वाचित, इनका कार्य= संगठनात्मक सुधार, प्रशासनिक दक्षता, प्रभाव जांचना + धन खर्च पर नज़र; ३-सरकारी उपक्रम समिति- १५सदस्य, १०लोक सभा से, ५राज्य स से, निर्वाचन= एकल संक्रमण, कार्य= सरकारी उपक्रमों का लेखा परिक्षण + इनकी कार्य प्रणाली/ वित्तीय नियंत्रण/ महालेखा परीक्षक परीक्षण; [२] तदर्थ समिति - विशेष कार्य हेतु।

II संघीय कार्यपालिका ; भारत का राष्ट्रपति- (अनु 52) - एक राष्ट्रपति, अनु 53(१) संघ की कार्यपालिका शक्ति = राष्ट्रपति = कार्यपालिका का प्रधान ; शक्ति प्रयोग मंत्री परिषद् द्वारा और मंत्री संसद से, निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता; राष्ट्रपति योग्यता - नागरिक, उम्र > 35, सदस्य योग्यता, govt employe ना हो, अन्य जगह सदस्य ना हो। राष्ट्रपति का निर्वचान - अनु 54/55 काफी उलझी हुई है, १-अप्रत्यक्ष चुनाव- जनता से न होकर विधान सभाएं + संसद सद्यासाया करते; २-गुप्त मतदान ३-निर्वचान मंडल द्वारा निर्वचान (अनु 54); 4-संघ राज्यों को समान मत - अनु 55(१) राज्यों को समरूपता 55(२) सभी राज्यों को बराबर मत अधिकार; 5-विधानसभा मतों निर्णय पद्वति (अनु 55(2(a)- राज्यों में जनसँख्या असमानता है+ अनुपात भी असमान hence formula => एक सदस्यों के मतों की संख्या = [उस राज्ये की जनसँख्या)/उस राज्ये की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य] / 1000 ; ६-संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के निर्णय की padhhti : राष्ट्रपति चुनाव में संसद के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य को कितने मत देने के अधिकार का सूत्र - (संसद के प्रत्येक निर्वाचित संसद के मत = [देश की समस्त विधान सभाओं के सदस्यों के कुल मतों का योग] / [संसद (राज्य स + लोक स) के निर्वाचित सदस्य]; 7- एकल संकरण मत चुनाव प्रणाली का उपयोग- इसका प्रयोग राष्ट्रपति निर्वाचन में होता, गुप्त मतपत्र, तीन लक्षण हैं (i) सर्वप्रथम कोटा- सूत्र= [(डाले गए मत)/२]+1 (ii) प्रत्येक उम्मीदवार को उतने ही मत देने होंगे जितने उम्मीदवार हैं (iii) मतदाता नाम के आगे १,२,३... लिखकर ranking; 8. राष्ट्रपति पद प्रत्याशियों के लिए प्रस्तावकों व अनुमोदकों की संख्या में वृद्धी - जून १९९७ राष्ट्रपति द्वारा १९७४ अधिनियम संशोधन निम्नलिखित - i. 50 निर्वाचक प्रस्तावकों का होना आवश्यक; ii. 50 निर्वाचकों का अनुमोदकों रूप में होना आवश्यक; iii. Rs.15,000 जमानत; 9. मतों की गिनती - i. Total Count ii. Kota Fixing iii. पाहिले first preference candidate count होता iv. कम कोटा-वोट प्रत्याशी बहार v. और उसके वोट बाँट देते; vi. revoating - जब तक कोटा पुर नही होता; note : - (india's IInd president VV Giri is exception). राष्ट्रपति/ उप राष्ट्रपति चुनाव सम्बन्धी विवाद /निर्णय - उचतम न्यायालय को पॉवर है, (39th संविधान संशोधन), पर राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, pm & लोक सभा अध्यक्ष इस power से बाहर थे पर 44th संशोधन अधि 1978 अनु 71 में वापस - निम्नलिखित है- i. क्या घुस या दबाव दिया गया, ii. मतपत्र में हेराफेरी, iii. नियम की अवहेलना, iv. नामांकन पात्र में गडबडी; जैसा 1976 में Dr. Jakir Huss + 1969 में vv giri case. भारत के राष्ट्रपति- Dr.Rj. Prasad-(First) Smt. Pratibha Patil (Prsnt). राष्ट्रपति की पदावधि- 5 yr, फिर चुनाव लड़ सकता, नया राष्ट्रपति आने तक बना रहेगा, 6 माह तक vote होना ज़रूरी, तब तक उप राष्ट्रपति संभालेगा, Salary: Dr. R.Prasad पहिली salary 10000, 1998- 50000, 11/09/2008 से150000/pm; महाभियोग Impeachment- अनु 61 यदि राष्ट्रपति संविधान उल्लंघन/ अतिक्रमण तो, 5yr पुरे होने पाहिले संसद उसे अपदस्थ+ नया राष्ट्रप चुन, 1/4 सदस्यों हस्ताक्षर ज़रूरी, 14 दिन पाहिले सूचित, दोषमुक्त साबित अधिकार, २/३ वोटिंग तो संसद के दुसरे सदन में भेजा जाता, पुनः विचार होता, फिर अगर वहां भी २/३ बहुमत - तो राष्ट्रपति को पदमुक्त, किसी न्यायालय में अपील नही; शपथ- मुख्य न्यायधीश के समक्ष; राष्ट्रपति की शक्तियां - अनु 74(1) सभी शक्तियां मंत्रीपरिषद् से मिलकर; now ४४ वे संशोधन अधि १९७८ अनु 74(1) मंत्रणा को वापस पुनः विचार हेतु भेजा जा सकता; मंत्रिपरिषद द्वारा वापस भेजी गई मंत्रणा Bounding हैं; राष्ट्रपति के अधिकार और शक्तियां: 1.कार्यपालिका शक्तियां- 42 संशो अधि अनु 74(1)= पुनः विचार हेतु वापस; उपर्युक्त a. शासन कार्य राष्ट्रपति के नाम से होता अनु53; b. मंत्रिमंडल के निर्माण अधिकार- अनु 75 - वोटिंग के बाद मंत्री विभागीकरण सलाह+Mgmt.; c. मंत्रिमंडल के निर्णयों से अवगत रहना - संपर्क/बैठक द्वारा d. मंत्री म निर्णयों को पुनः विचार हेतु वापस भेजना; e. अनेक उच्च अधिकारिओं की नियुक्तियां- e.g. मंत्रयों/न्यायधीशों/महालेखा परीक्षक/महान्यायवादी/लोक सेवा आयोग/वित्त आयोग सदस्यों/राजदूतों/वाणिज्य दूतों आदि की नियुक्ति; f. सैनिक शक्तियां- तीनो सेना का प्रधान सेनापति, युद्ध घोषणा/संधि पर संसद द्वारा स्वकृति जरुरी; g. कूटनीति/विदेशी मामले- राजदूत नियुक्ति, स्वागत, संधि, समझौते, लेकिन संसद सिव्कृति जरुरी; h. संघ शासित क्षेत्रों व राज्य सरकारों से सम्बंधित शक्ति- नियम+राज्यपाल नियुक्ति+निर्देशन; 2. विधायी शक्तियां : १-संसद का अभिन्न अंग, २-संसद को आमंत्रण, स्थगित, संबोधन, भंग अधिकार, ३-संसद सदस्य मनोनीत (बारहा सदस्य) अधिकार +अंग्लो इंडियन मनोनीत अधिकार, ३-विधेयकों को स्वकृति, ४-आंशिक निषेध अधिकार (अनु १११), ५-कुछ विधेयक हेतु राष्ट्रपति अनुमति आवश्यक- e.g.- धन विधेयक, संविधान संशोधन विधेयक, ६-अध्यादेश - अनु १२३- तुंरत कानून बनने का अधिकार संसद द्वारा; 3. न्यायिक शक्तियां - a.न्यायधीश नियुक्ति- लेकिन अपदस्थ नही कर सकता, b. क्षमा की शक्ति- अनु 72-मार्शल/मृत्यु दंड क्षमा/कम करना/अन्य दंड में बदलना; 4. वित्तीय शक्तियां - a. धन विधेयक स्वकृति, b. बजट प्रस्तुत करना- वित्त मंत्री साथ, c. आकस्मिकता निधि पर अधिकार- संसद स्वकृति जरुरी नही, d. वित्त आयोग की नियुक्ति - यह आयोग आय को केन्द्र/राज्य सरकारों में वितरित अधिकार f. महालेखा परीक्षक पड़ अधिकारी की नियुक्ति; 5. अन्य शक्तियां - चुनाव आयोग सदयस्य संख्या निश्चित करता, sc/st/obc कल्याण हेतु आयोग नियुक्त करता, संघ लोक सेवा आयोग नियुक्ति, अल्पसंख्यकों हेतु आयोग;

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां : भाग 18, अनु 352-360, आपात घोषणा मंत्रिमंडल के परामर्श से ही, आपातकालीन परिस्थितियां : a. युद्घ,आक्रमण,सशस्त्र विरोध, या आशंका-अनु 352, b. राज्ये में संविधान असफ्फलता, (अनु ३५६) c. वित्त संकट (अनु ३६०); आपातकाल की अवधि (६ माह) - ४४ वें स संशोधन अधि - २/३ बहुमत जरुरी, संसद पाहिले ख़तम कर सकती, ६ माह बाद स्वकृति जरुरी; आपातकाल के विरुद्ध संरक्षण - 44th संवि संशोधन अधि 1978= दुरूपयोग रोकना, जैसे :- -आपात घो ओनली सशस्त्र विरोध case में ही, -मंत्री परिषद् से स्वीकृति, -(२/३) बहुमत ज़रूरी, - छ मास बाद संसद स्वकृति जरुरी, -लोकसभा बहुमत तो राष्ट्रपति इसे ख़तम कर सकता, -लोकसभा १/१० भाग इसके against बैठक बुला सकताम, -44 वें संशो = पहिले मंत्रिपरिषद लिखित प्रस्ताव फिर आपातकाल, -अनु 358(1) सशस्त्र विद्रोह में आपात लागु नही, -अनु(358)a-b मूल अधिकार स्थगन हेतु न्यायपालिका /कार्यपालिका अनुमति जरुरी, १०-अनु 359 आपात में अनु 20 & 21 वाली व्यक्तिगत स्व स्थगित नही की जा सकती; घोषणा का प्रभाव - १-संघीये कार्यपालिका राज्यों को विशेष रूप से चला सकती, २-संसद को विशेष कानून बनाना/परिवर्तन अधिकार, ३-संसद राज्य अधिकारीयों के कर्तव्यों में परिवर्तन अधिकार, ४-मूल अधिकारों का स्थगन अनु 358(1), ५-लोकसभा कार्यकाल बढ़ा सकती; III वित्तिये संकट- अनु 360- अर्थ्वावस्था बिगड़ रही/खतरा हो- तो राष्ट्रपति वित्त संकट घोषणा करता, अवधि= २m, प्रभाव = १-केन्द्र सरकार राज्यों को वित्तिये आदेश दे सकती, २-cent.govt. को वेतन कटौती अधिकार, ३-cent.gov. को संघ सरकार कर्मचारियों/न्याधीश के वेतन/भत्तों कटौती अधिकार, ४-राज्य के धन/अन्ये विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वकृति जरुरी (आज तक राष्ट्रपति ने इसका प्रयोग नही किया); भारत का उप राष्ट्रपति (vice pre.)अनु(63) : एक उप रा होगा, alternative में राष्ट्रपति का कार्य संभालता; उप रा योग्यताएं- 1.भारत का नागरिक, 2. 35 वर्ष से > हो, 3.रा सभा योग्यताएं 4. govt.employee. न हो, 5. संसद/विधान का सदस्य न हो यदि निर्वाचित होता तो पिछला स्थान रिक्त; उप राष्ट्रपति चुनाव : अनु 66(1)- संसद के दोनों सदन द्वारा निर्वाचन, अनुपातिक प्रतिनिधित्व सिधांत अनुसार अकेल संक्रमण मत प्रणाली (single transferable vote sys.) 15000 प्रतिभूति (security) जमा, २० निर्वाचक प्रत्याशी + २० निर्वाचक अनुमोदक हों; उप रा पदावधि - 5 yrs. दोबारा joining अधिकार, & before termination. (first उप रा = डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन now Md. Hamid Ansari); उप राष्ट्रपति शक्तियां : १.राज्यसभा का सभापति - सदस्य नही लेकिन पदेन सभापति (ex-offico Chairman) होता, सदन में मताधिकार नही लेकिन निर्णायक मत दे सकता, अनु 97, २-सदन में अनुशासन, ३-वाद विवाद का समय निर्धारण करता, ४-मतदान results घोषित करना, ५-indiciplines को बहार कर सकता, वेतन : सभापति रूप में मिलता न की उपराष्ट्रपति रूप में Rs.40,000; राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में : सारा कार्य करता;

प्रधानमंत्री PM: सम्पूर्ण शासन व्यस्था का केन्द्र बिन्दु है same as england; संवैधानिक पक्ष अनु 75(1) : pm की नियुक्ति रा करेगा & अन्ये मंत्रिओं की नियुक्ति pm की सलाह पर रा करेगा, बहुमत दल के नेता को ही pm नियुक्त किया जा सकता, अनु 75(5) ६ मास तक संसद स्द्य्सयता प्राप्त किए बिना भी pm नियुक्ति सम्भव, न्युक्ति परम्पराएँ : i. लोकसभा बहुमत दल नेता को रा सरकार आमंत्रित करता, ii. बहुमत दल सर्वसम्मति से करता, iii. अगर किसी दल को बहुमत नही तो रा लोकसभा में सबसे बड़े दल को आमंत्रण, जैसा bjp वाजपयी & cong.(i) Dr.मनमोहन सिंह, iv. रा विरोधी दल समर्थन / स्वविवेक से भी अल्पमत सरकार का गठन कर देता, [A]प्रधानमंत्री +उसका मंत्रिमंडल - मंत्री नियुक्ति 99% कार्य pm इच्छा अनुसार - १-मंत्रियों की नियुक्ति- अनु ७५(१) pm के परामर्श से, -मंत्रियों की पदच्चुती - अनु ७५(२) - रा और pm सलाह द्वारा किसी मंत्री को प्द्च्युक्त कर सकते, - विभागों का वितरण + फेरबदल; [2] PM त्तथा रा अन्तर - राज्य अध्यक्ष= रा & शासन अध्यक्ष = PM ; [3] pm & दल का अध्यक्ष - दल अध्यक्ष educated होना चाहिए, [4] pm & संसद: निम्न शक्तियां : i. संसद की सम्पूर्ण कारवाही नियंत्रण - pm & लोकसभा अध्यक्ष आपसी विचार विमर्श से करते, ii. महत्वपूर्ण नीतियों की घोषणा - pm करता, iii. सरकार की नीतियों का बचाव - मंत्रिओं के अस्पष्ट उत्तरों / विरोधी दल मी आलोचनाओं का करार उत्तर, iv. लोकसभा भंग करने शक्ति - अनु 85(२)(b); मंत्रिपरिषद : pm & उसकी मंत्रिपरिषद = कार्यपालिका, म प का कार्य = pm को सलाह देना, मंत्री परिषद् में ३ प्रकार के मंत्री : 1. मंत्रीमंडलीये स्तर/ सदस्य-(cabinet minister)- अपने विभाग में प्रमुख होते, pm also come in this, Meetings are गुप्त, 2. राज्य मंत्री (state min.)- निचे स्तर के मंत्री, स्वतंत्र विभाग; 3. उपमंत्री (Dpty Min)- IIIrd स्तर के मंत्री, प्रशासनिक कार्य, मंत्रिमंडल बैठकों में भाग नही लेते; मंत्रियों की नियुक्ति - १-pm द्वारा बहुमत द्वारा, २-अन्य मंत्रियों नियुक्ति राष्ट्रपति करता, ३-pm विभागों का वितरण करता, ४-मंत्री-सदन/राज्य सरकार/लोक सभा सदस्यों में से चुना जा सकता, ५- सदन का सदस्य होना जरुरी नही लेकिन 6 माह के अन्दर सदस्य बनना जरुरी, ६-उसी सदन में मत दे सकता जिसका वह सदस्य है, मंत्रिपरिषद की निर्धारित संख्या: 91 संवि संशो अधि २००३ संख्या fix कर दी गई, मंत्रिपरिषद आकर = [(निचले सदन की कुल संख्या)x15]/100 (i.e. 15%); संसद में मूलतः प्रस्तुत विधेयक में मंत्रिओं की संख्या = [(दोनों सदनों के सदस्यों की कुल संख्या)x10]/100 (i.e. 10%), छोटे राज्यों में जहाँ कुल सदस्य संख्या क्रमशः ३२ व ४० है तो मंत्रिओं की संख्या ७ रखने का प्रावधान पाहिले विधेयक में किया गया था, पर संस्तुशन के आधार पर छोटे राज्यों के लिए १२ मंत्रिओं का प्रावधान संशो हुआ; मंत्रिओं की responsibilities : लोक सभा के प्रति, रा सभा के प्रति नही, अगर लोक सभा किसी भी मंत्री के प्रति अविश्वास तो पुरी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र; III न्यायपालिका : कार्य अवं आवश्कता : १-नागरिकों की स्वंत्रता, २-रक्षा, ३-व्यस्था, ४-अर्थव्यस्था, ५-सामान अधिकार, ६-अपराध न्यूनीकरण, ७-शान्ति भाईचारा, ८-संस्कृति रक्षा, भारत में संविधान आवश्यकता: १-संविधान को सर्वोच्च माना गया, शासन की शक्ति है, भारत को इसकी सखत आवश्यकता थी, २-संघ शासन है, केन्द्र / राज्य सरकार में क्षेत्राधिकार झगडे हो सकते हैं/थे, ३-नागरिक मूल अधिकार, सीमा निर्धारण; न्याय पालिका की भूमिका/महत्व: १-कानून व्याख्या/झगडों निपटारा- दीवानी/फौजदारी, २-न्यायधीशों निर्मित कानून=हवाला देना/दलील,=बाध्यकारी मिसालें देना, ३-जन अधिकारों की रक्षा- आम आदमी/राज्य कर्मचारी सबके लिया एक से कानून, ४-संविधान की व्याख्या- लचीला कानून, ग़लत कानून हटाना-सही लागु करना, अनु २१ जीने का अधिकार, ५-परामर्श कार्य: परामर्श बाध्यकारी नही होते, ६-जनहित में मुक़दमे(PIL)Public Interest Litigation- गरीब, सताए, केवल पोस्ट कार्ड द्वारा भी उचतम न्यालय में आवाज उठा सकते, Nov.1995 उपभोगता संरक्षण कानून तहत, डाक्टरों के विरूद्ध मुक़दमे चले, १९९६ सरकारी मकानों आबंटन घोटाला जाँच, feb.2000 कूड़ा कचरा जुरमाना + झुग्गी अतिक्रमण कानून; सामाजिक आर्थिक परिवर्तन में न्यायपालिका की भूमिका: न्याय और मार्क्सवाद, अधिकांश न्यायाधीश उच्च मध्य वर्त से होते, 1973 केशवानंद भरती केस - उच् न्यायालय ने निर्णय दिया की संसद संविधान में कोई ऐसा संशोधन नही कर सकती जिससे संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सिमित कर दिया जाए; उच्चतम न्यायालय की रचना व संगठन: १-सरवोछ न्यायालय का गठन: अनु 124(1) - जब तक संसद कानून न कहे max 1-7 न्यायाधीश और अधि 1980= मुख्या न्यायधीश(१) & max 25, but presently 30 करने का प्रस्ताव रखा है; २-अनु १२७: तदर्थ न्यायाधीश (ad hoc basis) पर नियुक्ति की जा सकती, मुख्य न्यायाधीश+ राष्ट्रपति अनुमति से, ३-अनु १२८- अवकाश (retired) न्यायाधीशों को भी बुलाया जा सकता; मुख्या व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति: usa/englnd. से अलग है, भारत में रा को वैधानिक अधिकार की उच् न्य / सर्वोच्च न्य नियुक्ति समय न्यायाधीशों से परामर्श करेगा, 1998 फैसले अनुसार "सिफारिश भेजने से पाहिले मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायलय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से विचार जरुरी"; seniority basis वाले न्यायाधीश को प्राथमिकता: लेकिन इसका बहुत बार उपेक्षा हुई, e.g.- H.R. Khanna Case- emergency में नज़रबंदी कानून सम्बन्धी क़ानून - काफी विवाद हुआ बाद में उनको seniority होने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश नही बनाया- खन्ना ने त्यागपत्र दे दिया; सरवोछ न्य न्यायाधीशों योग्यतैएँ : १.नागरिक, २.एक या अधिक उच्च न्यायालय में min 5 साल निरंतर न्यायाधीश रहा हो, -१० वर्ष निरंतर भारत उच् न्यायालय में वकालत, ४-राष्ट्रपति की नज़र में सुयोग्य हो, सुविध्यें और वेतन : बिना किराय का माकन, अनेक भत्ते, पेंशन; शपथ ग्रहण : राष्ट्रपति के समक्ष संविधान के प्रति निष्ठां/ ज्ञान/ विवेक शपथ; न्यायाधीशों का कार्यकाल / अपद्स्थ्ता : 65 yrs retaire, दुराचार पर अपदस्थ किया जा सकता, विधि बहुत कठिन है- संसद दोनों सदन कुल तथा उपस्थित संख्या के २/३ बहुमत- एक ही सत्र में दोनों सदनों में पारित हो तभी, लेकिन राजनैतिक कारणों से अपदस्थ नही कर सकते; सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां / अधिकार क्षेत्र: बहुत विस्तृत हैं, hence २ भागों में बनता गया - (a) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार (b) अपीलीय अधिकार क्षेत्र- १.प्रारंभिक- जो मुक़दमे सीधे सरवोछ न्यायालये में- e.g.- १.भारत सरकार vs भारतीये संघ/राज्ये सरकार/सरकारें; २-भा सरकार vs राज्ये सरकारें और दूसरी और भारतीये संघ की एक / अधिक राज्ये सरकारें; ३-भारतीये संघ में राज्ये सरकार vs राज्ये सरकार; i. govt. laws ii. central govt. laws; 2. अपीलीय अधिकार क्षेत्र- अगर कोई उच्च न्य से संतुष्ट न हो तो सर्वोच्च न्य hence सर्वोच्च न्य में निम्नलिखित अपील - १-संविधानिक व्याख्या- अनु १३२ डेफिनिशन confusion etc. २-दीवानी(civil)- बशर्ते की इसका कानून/सार्वजानिक सम्बन्ध न हो, ३-फौजदारी(criminal) दो प्रकार के होते - a. प्रमाण पत्र रहित- अनु १३४(क)/(ख); (क) यदि उच् न्यायालय certi न दे तो further 2 conditions-a.मृत्यु दंड केस है अधीनस्थ न्य से मुकदमे को विचार हेतु अपने पास मंगवाकर अभिउक्त को प्राण दंड दिया, (ख) प्रमाण पात्र सहित-अनु १३४(ग) उ न्य cereti की विवाद सर्वो न्याय विचार के योग्य है, ४-विशिष्ट (special)- जो मामले १३२ - १३५ में नही आते, और पिछले न्यायालय में कोई त्रुटी हो गई हो, लेकिन सनिक न्यायालय इसमे नही आते, ३.कुछ मुकदमो का हस्तांतरण- e.g. बहुत से same मामले आ जायें तो सरवोछ न्यायालय उन सभी मुकदमों को अपने पास मंगवाकर हवाला निर्णय करेगा और सभी का हल उस पाहिले इक के आधार पर होगा, ४.परामर्श सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र - अनु १४३- राष्ट्रपति या कोई भी उच्चतम - परामर्श मांगता तो देना चाहिए, लेकिन bounding नही है, ५.मूल अधिकारों की रक्षा सम्बन्धी- इन संवैधानिक उपचारों में पृच्छा (Quo Warranto), उत्प्रेषण लेखा (Habeas Corpus), परमादेश (mandamus) जैसे कानून आते, ६.न्याय पुनर्निरीक्षण (Judical Review)- 7 न्यायाधीश अगर किसी कानून को ग़लत तो ग़लत, 7. अपने निर्णय पर पुनः विचार- अनु १३७- उलटकर नया निर्णय दे सकता, 8. abhilekh nyayalye ke roop me -